चाईबासा (CHAIBASA) : झारखंड अलग राज्य अर्थात् झारखंड आंदोलन, वनों पर वनवासियों का अधिकार एवं गुआ खदान से
निकलने वाली लाल पानी से प्रभावित व बंजर हो रही खेतों को नुकसान पहुंचाने से
रोकने आदि मांगों से जुड़ी घटना का उदाहरण है गुआ का गोलीकांड. 8 सितम्बर 1980 को हुए इस गोली कांड में दर्जनों आदिवासी
आंदोलनकारी व पांच बीएमपी (बिहार मिलिट्री पुलिस) के जवान शहीद और दर्जनों घायल
हुये थे. लेकिन,
आज भी गुआ
गोलीकांड से जुड़ी शहीद बेदी पर मात्र 10 ही शहीदों का नाम दर्ज है. उल्लेखनीय है कि वर्ष 1980 के दशक में झारखंड आंदोलन के नाम पर सारंडा
के जंगलों की भारी पैमाने पर कटाई सारंडा के बाहर से आये लोगों द्वारा निरंतर किया
जा रहा था. जंगलों को मैदान बना कर उस वन भूमि पर कब्जा करने का कार्य चल रहा था. वन विभाग
निर्दोषों को भेजने लगा जेल इसके खिलाफ गुआ
वन विभाग ने कार्रवाई करते हुये इस अभियान में शामिल लोगों समेत कुछ निर्दोष लोगों
को भी पकड़ कर जेल भेजना प्रारंभ कर दिया था. हालांकि उस समय झारखंड अलग राज्य को
लेकर पूरे राज्य में व्यापक आंदोलन चल रहा था. उसी समय यह कार्य भी सारंडा में
झारखंड आंदोलन के नाम पर जारी था. इसके खिलाफ वन विभाग की यह कार्रवाई ने आग में
घी डालते हुये दोनों कार्य में लगे लोगों को संगठित कर दिया. इन दोनों आंदोलनों के
अलावे उस समय की इस्को की गुआ खदान (अब सेल) से निकलने वाली लाल पानी से सारंडा के
गांवों की खेत तथा नदी-नाले प्रदूषित हो गए थे. इससे भी सारंडा के ग्रामीण नाराज
थे. देवेन्द्र माझी
के आह्वान पर पारंपरिक हथियार के साथ जुटे लोग इन तीनों मामलों
को लेकर चक्रधरपुर के उस वक्त के पूर्व विधायक देवेन्द्र माझी (अब स्वर्गीय) के
आह्वान पर सारंडा, कोल्हान व पोड़ाहाट रिजर्व वन क्षेत्र के हजारों ग्रामीणों ने आठ सितम्बर 1980 की सुबह से ही गुआ में वन विभाग एवं इस्को
प्रबंधन के खिलाफ पारंपरिक हथियारों के साथ संगठित होने लगे. आंदोलनकारियों की
मांग थी कि जंगल कटाई के नाम पर फर्जी मुकदमा कर जेल भेजे गये लोगों को रिहा करो, फर्जी मुकदमा वापस लो, लाल पानी खदानों से नदी-नालों व खेतों में
छोड़ना बंद करो,
आदि मांगों को
लेकर वन विभाग तथा इस्को प्रबंधन के खिलाफ नारेबाजी व भाषणबाजी होती रही. स्थिति विस्फोटक
हुई तो लगाया धारा 144 इस आंदोलन की
विस्फोटक स्थिति को देखते हुये गुआ में धारा 144 लगा बीएमपी व बिहार पुलिस के जवानों को तैनात
किया गया. आंदोलन में पूर्व विधायक बहादुर उरांव, झामुमो नेता भुवनेश्वर महतो, सुखदेव भगत, सुला पूर्ति आदि आदिवासियों के दर्जनों
प्रमुख नेता शामिल थे. सभी आंदोलन के नेतृत्वकर्ता पूर्व विधायक देवेन्द्र माझी के
आने का इंतजार आंदोलन स्थल पर कर रहे थे, लेकिन वे नहीं पहुंच पाये थे. इसी बीच आंदोलन व नारेबाजी वन विभाग, इस्को प्रबंधन के खिलाफ तेज होता रहा.
आंदोलनकारी,
वन विभाग
कार्यालय की तरफ पारंपरिक हथियार के साथ बढ़ रहे थे. स्थिति को सामान्य व
नियंत्रित करने हेतु आदिवासियों के नेता भुवनेश्वर महतो को बीएमपी जवानों ने
गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद स्थिति विस्फोटक हो गई और नारेबाजी के साथ भड़काऊ
बयानबाजी भीड़ ने तेज कर दी. भीड़ ने बीएमपी
जवानों पर तीर चलाया, तो चली गोली उत्तेजित भीड़
में से कुछ लोगों ने बीएमपी जवानों को निशाना कर तीर चलाया. इसमें पांच जवान शहीद
हो गए. दोनों तरफ से गोलीबारी शुरू हो गई. इसमें दर्जनों आंदोलनकारी घायल हो गए.
उन्हें गुआ अस्पताल में इलाज हेतु ले जाया गया. इस बीच बीएमपी जवानों को पता चला
कि घायल आंदोलनकारी गुआ अस्पताल में इलाज हेतु गये हैं, तो सभी वहां पहुंच घायलों पर अंधाधुंध फायरिंग
कर दी. इसमें दर्जनों आंदोलनकारी मारे गये और सैकड़ों घायल हो गए थे. इस घटना के
बाद लगभग तीन वर्षों तक सारंडा क्षेत्र में दहशत और आक्रोश व्याप्त रहा. लेकिन, बाद में पूर्व सांसद कृष्णा मार्डी ने इस्को
प्रबंधन की इजाजत के खिलाफ गुआ बाजार में शहीद स्थल का निर्माण कराया. तब से गुआ
में शहीद दिवस मनाने का सिलसिला जारी है. गुआ गोलीकांड के
शहीदों की सूची ईश्वर सरदार
(कैरोम),
रामो लागुरी, चन्दो लागुरी (दोनों चुर्गी), रेंगो सुरीन (कुम्बिया), बागी देवगम, जीतू सुरीन (दोनों जामकुंडिया), चैतन चाम्पिया (बाईहातु), चुड़ी हांसदा (हतनाबुरु), जुरा पूर्ति (बुंडु), गोंडा होनहागा (कोलायबुरु) शामिल हैं.
हालांकि शहीदों व घायलों की संख्या काफी थी, लेकिन उस वक्त पुलिस के डर से लोग सामने नहीं
आये. कुछ मृतकों को उनके गांव में दफना दिया गया, जबकि अनेक घायल जंगल और गांवों में छुप कर
अपना जख्म देहाती दवाओं से भरने का कार्य किया. गुआ के शहीदों के प्रायः आश्रितों
को सरकार द्वारा नौकरी दे दी गयी. गोलीकांड में
घायल बेड़ा का घाव तो भर गया, लेकिन यादें ताजा हैं गुवा गोलीकांड
का घायल बेड़ा राईका. गुवा गोलीकांड का चश्मदीद बेड़ा राईका निवासी भोरगोड़िया
सिरका को गुआ पुलिस की गोली जबडे़ के आर-पार हो गई थी. वह जान बचा कर घायल अवस्था
में जंगल में भाग गया. जंगल में ही जड़ी बूटियों से इलाज कर स्वस्थ तो हो गया.
लेकिन,
उसके दिल- दिमाग
में उस कांड की यादें और घाव आज भी ताजा हैं. वह प्रत्येक शहीद दिवस के अवसर पर इस
उम्मीद के साथ अपने गांव से पैदल लगभग 12 किलोमीटर दूरी तय कर इसलिये आता है कि सरकार या शहीद की शहादत तले राजनीति
करने वाले उसे कुछ मुआवजा दिला सकें.