धनबाद (DHANBAD) : अरुण कुमार राय उर्फ एके राय सिर्फ दलित, आदिवासियों,वंचित मजदूर
वर्गों का हिमायती ही नहीं सच्चे रहबर थे. झारखंड अलग राज्य के संघर्ष की दिशा में
लाल और हरा झंडा को जोड़कर मिल का पत्थर स्थापित करने वाले बंगाल के लाल थे. लेकिन
धनबाद के कोयला मजदूरों के पीड़ा,शोषण और दमन से
मुक्ति की लड़ाई ने उन्हें धनबादवासी बना दिया. झारखंड अलग राज्य के लिए एके राय
ने झारखंड मुक्ति मोर्चा नमक संगठन को स्वर्गीय बिनोद बिहारी महतो उर्फ विनोद बाबू
और दिसुम गुरु वीर शिबू सोरेन से मिलकर पांडुलिपि तैयार किए थे. इतना ही नहीं
उन्होंने 60 और 70 के दशक में
झारखंड आंदोलन को लाल झंडा और हरा झंडा से जोड़कर शोषण मुक्त झारखंड का आगाज किए
थे. सादगी पसंद वह साधारण कद काठी के क्रांतिवीर एके राय भले ही
कोलकाता के रहने वाले थे लेकिन झारखंड प्रांत के धनबाद जिले में मजदूरों पर हो रहे शोषण
जुल्म अत्याचार को देखकर आत्म भाव विभोर हो गए थे और उन्होंने अपनी संपूर्ण ठाठ और
इंजीनियरिंग की डिग्री को दरकिनार करते हुए मजदूरों का रहबर बन गए. स्वयं को
मजदूरों के रंग में रंग कर संघर्ष,त्याग और तपस्या के प्रतिमूर्ति बन गए थे. मजदूरों की आवाज से धनबाद
लोकसभा का चुनाव जीत गए. आतंकी साया से मजदूरों को मुक्त करने लगे इसी क्रम में
शोषक और दमन चक्र के लोगों ने एके राय को जब उत्तर प्रदेश से शूटर मंगाकर मारने के
लिए भेजा. एके राय अपने मासस कार्यालय में झाडू लगा रहे थे. शूटर एके राय से उनका
पता पूछा की एके राय कहां रहते हैं मुझे उनसे मिलना है. विनम्रता पूर्वक एके राय
ने उन्हें अर्थात सूटर को बैठाया पानी दिया और वे अपने कमरे की साफ सफाई और
कार्यालय के बाहर साफ सफाई करने के बाद शूटर के साथ बैठ गए. उन्होंने शूटर को कहा
कि मैं ही एके राय यह सुनकर शूटर सन्न रह गया जैसे उसे सांप सूंघ लिया हो. वह सोच
भी नहीं पा रहा था कि इतना साधारण विनम्र व्यक्ति एके राय जिसे मारने के लिए मुझे 5 लाख रु.का सुपारी मिला है उसकी नियत बदल गई. वह एके राय को
विनम्रता पूर्वक प्रणाम कर और पैर छूकर वापस चला गया. अर्थात एके राय के विनम्रता के आगे शूटर नतमस्तक हो गया था.एके राय से जुड़े अनगिनत
कहानियां हैं. मजदूरों के साथ-साथ झारखंड आंदोलन को दिशा देने की दिशा में अपनी बौद्धिक
क्षमता का सशक्त परिचय दिया. उन्होंने विनोद
बाबू और दिसुम गुरु शिबू सोरेन के साथ मिलकर अलग राज्य के मुहिम को अंजाम तक पहुंचाने की दिशा में अपनी महती भूमिका अदा की
है. झारखंड अलग राज्य की लड़ाई कोयला मजदूरों की पीड़ा से मुक्ति की लड़ाई में
जीवन के आखिरी पड़ाव में कब पहुंच गए कि वह अपनी जवानी को भी भूल गए थे घर परिवार
बसाने का ख्याल भी कभी मन में नहीं आया. वर्ष 2008-09 में उन्हें
पैरालाइसिस मार दिया और वे कमजोर हो गए. 21 जुलाई 2019 को 84 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई. लाल और हरा झंडा
को जोड़ने वाले टेलर मास्टर आज हमारे बीच नहीं रहे बल्कि उनकी यादें और बस यादें
कामरेड एके राय के रूप में जीवित-जागृत है. रिपोर्ट : गनेश रावत, धनबाद