रांची (RANCHI): महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में वट सावित्री पूर्णिमा एक बहुत ही निजी अनुष्ठान है जो पीढ़ियों से चला आ रहा है. इस साल यह व्रत मंगलवार, 10 जून 2025 को मनाया जाएगा. अगर आप या आपके परिवार में कोई इस व्रत को मना रहा है, तो यहां आपको सही तिथि से लेकर पूजा सामग्री, मुहूर्त और इसके पीछे छिपे अर्थ के बारे में सब कुछ पता होना चाहिए.
वट पूर्णिमा की कहानी
वट पूर्णिमा व्रत भारतीय लोककथाओं की सबसे शक्तिशाली कहानियों में से एक है- सावित्री और सत्यवान की कहानी. जब यम ने सत्यवान के प्राण ले लिए, तो सावित्री रोई या भीख नहीं मांगी. वह टूटकर बिखरी नहीं और न ही गिड़गिड़ाई. सावित्री ने बस यम का अनुसरण किया, कदम दर कदम, उसे जाने नहीं दिया. उसने हिम्मत से बात की, डर के साथ नहीं- और किसी तरह, इसने सब कुछ बदल दिया. वट वृक्ष की छाया में ही उसकी कहानी बदल गई और तब से महिलाएं उस वृक्ष के पास लौटती हैं. वे इस विश्वास के साथ उसके तने के चारों ओर लाल धागे लपेटती हैं कि उसमें अभी भी उनके प्रियजनों की रक्षा करने की शक्ति है.
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत का महत्व
पति-पत्नी के बीच पवित्र बंधन को मजबूत करने वाला अनुष्ठान माना जाता है.
असमय विधवा होने और दुर्भाग्य से सुरक्षा के साथ जुड़ा हुआ है.
घर में स्वास्थ्य, शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना.
यह महिलाओं के लिए अपनी आध्यात्मिक शक्ति और लचीलेपन से जुड़ने का एक तरीका भी है.